जन्म कुण्डली में कैंसर कारक योग

  1. राहु को विष माना जाता है, यदि राहु का किसी भाव या भावेश से सम्बंध हो एवं इसका लग्न या रोग भाव से भी सम्बन्ध हो तब शरीर में विष की मात्रा बढ़ जाती है ! यह कैंसर का कारण बन सकता है !
  2. यदि षष्टेश – लग्न, अष्टम या दशम भाव मे स्थित होकर राहु से दृष्ट हो तब कैंसर होने की सम्भावना बढ़ जाती है !
  3. बारहवें भाव में शनि-मंगल या शनि-राहु, शनि-केतु की युति हो तब जातक को कैंसर रोग हो सकता है !
  4. यदि राहु की त्रिक भाव या किसी भी त्रिक भाव के स्वामी पर दृष्टि हो तब भी कैंसर रोग की सम्भावना बढ़ जाती है !
  5. यदि षष्टम भाव तथा षष्ठेश पीड़ित या क्रूर ग्रह के नक्षत्र में स्थित हों तब यह स्थिति कैंसर का रोग दे सकती है !
  6. बुध ग्रह त्वचा का कारक है ! अतः बुध ग्रह यदि क्रूर ग्रहों से पीड़ित हो तथा राहु से दृष्ट हो तब जातक को कैंसर रोग हो सकता है !
  7. बुध ग्रह के पीड़ित होने, हीनबली या क्रूर ग्रह के नक्षत्र में स्थिति होने पर भी यह स्थिति कैंसर को जन्म देती है ! “बृहत पाराशर होरा शास्त्र” के अनुसार षष्टम भाव पर क्रूर ग्रह का प्रभाव स्वास्थ्य के लिये हानिकारक होता है !
    यथा – “षष्ठरोग स्थाने गते पापे, तदेशां पापः” अर्थात रोग के षष्टम भाव में पापी ग्रह के स्थित होने पर रोग का प्रभाव बढ़ता है !
    अतः जातक रोगी होगा और यदि षष्टम भाव में राहु व शनि स्थित हो तब वह कैंसर जैसे असाध्य रोग से पीड़ित हो सकता है !
  8. सभी लग्नो में कर्क लग्न के जातकों को सबसे अधिक कैंसर रोग का खतरा होता है !
  9. कर्क लग्न में बृहस्पति कैसर का मुख्य कारक होता है, यदि बृहस्पति की युति मंगल और शनि के साथ छठवे, आठवे, बारहवें या दूसरे भाव के स्वामियों के साथ हो जाय तब व्यक्ति की मृत्यु कैंसर रोग के कारण होना लगभग निश्चित है !
  10. शनि या मंगल किसी भी कुण्डली में यदि छठे या आठवे स्थान में राहू या केतु के साथ स्थित हों तब कैंसर होने की प्रबल सम्भावना रहती है !
  11. छठे भाव का स्वामी यदि लग्न, आठवे या दसवें भाव में स्थित हो और पाप ग्रहों से दृष्ट हो तब भी कैंसर की प्रबल सम्भावना होती है !
  12. किसी जातक की कुण्डली में सूर्य यदि छठे, आठवे या बारहवें भाव में पापी ग्रहों के साथ स्थित हों तब जातक को पेट या आंतों में अल्सर और कैंसर रोग होने की प्रबल सम्भावना होती है !
  13. किसी जातक की कुण्डली में यदि सूर्य कहीं भी पापी ग्रहों के साथ स्थित हों और लग्नेश या लग्न भी पाप ग्रहों के प्रभाव में हो तब भी कैंसर की प्रबल सम्भावना बनती है !
  14. यदि कमजोर चंद्रमा पाप ग्रहों की राशि में छठवें, आठवे या बारहवें भाव में स्थित हों और लग्न अथवा चंद्रमा, शनि और मंगल से दृष्ट हो तब अवश्य ही कैंसर होता है !
  15. यदि चंद्रमा व शनि छठवें भाव में स्थिति हों तब व्यक्ति को पचपन वर्ष की उम्र पार करने के बाद रक्त कैंसर हो सकता है !
  16. आश्लेषा नक्षत्र, लग्न या छठे भाव से सम्बंधित होने पर और मंगल से पीड़ित होने पर कैंसर होने की प्रबल सम्भावना बनाती है !
  17. यदि शनि छठवें भाव में राहु के नक्षत्र में स्थित हो और पीड़ित हों तब कैंसर रोग की सम्भावना बनती है !
  18. यदि शनि और मंगल की युति छठे भाव में आर्द्रा या स्वाति नक्षत्र में हो रही हो तब भी कैंसर की सम्भावना बनती है !
  19. यदि मंगल और राहु छठवें या आठवें भाव को पीड़ित कर रहे हों तब त्वचा का कैंसर हो सकता है !
  20. यदि षष्टम भाव में मेष राशि स्थित हो या स्वाति या शतभिषा नक्षत्र पड़ रहा हो और शनि छठवे भाव को पीड़ित कर रहा हो तब त्वचा कैंसर का रोग हो सकता है !
  21. यदि जन्म कुण्डली में राहु या केतु लग्न में षष्ठेश के साथ स्थित हों तब पेट का कैंसर हो सकता है !
  22. यदि षष्टम भाव पीड़ित हो और राहु या केतु, आठवें या दसवें भाव में स्थित हों तब पेट का कैंसर हो सकता है !
  23. यदि किसी जातिका की कुण्डली में लग्नेश अष्टम, षष्टम अथवा द्वाद्श भाव में चला गया हो, लग्न स्थान पर क्रूर व पापी ग्रहों की स्थिति हो, चतुर्थ भाव का अधिपति शत्रुगृही होकर पीड़ित हो, छठवें भाव का अधिपति चतुर्थेश से सम्बंध बना रहा हो तब ऐसी स्थिति में जातिका को ब्रेस्ट कैंसर या स्तनों में बड़े विकार की सम्भावना प्रबल रूप से उत्पन्न होती है !
  24. छठे भाव में कर्क अथवा मकर राशि का शनि स्तन कैंसर का संकेत देता है !
  25. छठे भाव में कर्क या मकर राशि का मंगल स्तन कैंसर का द्योतक है !
  26. यदि छठे भाव का स्वामी पापी ग्रह हो और लग्नेश आठवें या दसवें घर में स्थित हो तब कैंसर रोग की आशंका होती है !
  27. यदि छठवें भाव में कर्क राशि में चंद्रमा स्थित हो, तब भी यह कैंसर का द्योतक है !
  28. चंद्रमा से शनि का सप्तम होना कैंसर की सम्भावना को प्रबल बनाता है !

जन्म कुण्डली में निम्न ग्रहों का संयोग होने पर भी कैंसर जैसे भयानक रोग होते हैं (janm kundali mai cancer)

  1. शनि, मंगल, राहु, केतु की युति षष्ठम, अष्ठम, द्वादश भाव में बनने पर कैंसर का रोग हो सकता है !
  2. यदि पापी ग्रहों की दृष्टि चंद्रमा पर पड़ रही हो साथ ही षष्ठम, अष्ठम अथवा द्वादश भाव में पापी ग्रह स्थित हों तब यह स्थिति कैंसर कारक होती है !
  3. लग्न पर पाप ग्रहों की दृष्टि होना अथवा लग्न का स्वामी षष्ठम, अष्ठम अथवा द्वादश भाव में स्थित हो जाना ! षष्ठम, अष्ठम अथवा द्वादश भाव के स्वामी का लग्न में स्थित होना कैंसर रोग पैदा कर सकता है !
  4. यदि किसी भाव पर पाप ग्रहों की दृष्टि पड़ने से चंद्रमा दूषित हो रहा हो तब उस भाव से सम्बंधित अंग पर कैंसर हो सकता है !
  5. चंद्रमा तथा मंगल के साथ किसी अन्य पाप ग्रह की युति या दृष्टि सम्बंध होने पर रक्त कैंसर होने की अधिक आशंका होती है !
  6. चंद्र ग्रह का त्रिक भाव में होकर उस पर पाप ग्रहों की दृष्टि पड़ना या पाप ग्रहों की युति होना कैंसर कारक होता है !
  7. षष्ठम, अष्ठम अथवा द्वादश भाव में स्थित राशि के स्वामी का परस्पर स्थान परिवर्तन होना तथा उसका सम्बंध लग्न भाव के स्वामी से होना कैंसर रोग का योग बनता है !
  8. लग्नेश के निर्बल होकर पाप ग्रहों के साथ षष्ठम, अष्ठम या द्वादश भाव में स्थित होने पर, कैंसर का रोग उत्पन्न करता है !
  9. मारक भाव के स्वामी का पाप ग्रहों की दशांतर होने या दृष्टि सम्बंध होने पर कैंसर रोग के कारण देहांत होने के योग बनना !

कैंसर से बचाव के उपाय और उपचार

जन्म कुण्डली में भावों के अनुसार शरीर से सम्बंधित ग्रहों के रत्नों का धारण करने से रोग-मुक्ति सम्भव होती है ! लेकिन कभी-कभी जिस ग्रह के द्वारा रोग उत्पन्न हुआ है, उसके शत्रु ग्रह का रत्न धारण करना भी लाभप्रद होता है ! परन्तु यह अन्तिम विकल्प नहीं है ! इसके साथ अन्य ज्योतिषीय उपाय भी करने चाहिए !

एक बात बहुत स्पष्ट रूप से समझ लेना चाहिए कि रोग हो जाने के बाद मात्र ज्योतिषीय मंत्र-यंत्र से ही किसी रोग का निवारण नहीं किया जा सकता है क्योकि ग्रह स्थितियों को सुधारकर भी आप शरीर में आये भौतिक परिवर्तन को बदल नहीं सकते हैं ! दूध जब तक दूध है तभी तक उसे बचा सकते हैं, दही बनने या फट जाने पर वह दुबारा दूध नहीं बनाया जा सकता, इसलिए कैंसर जैसे घातक रोग के किसी अंग में पनप जाने पर, मात्र ज्योतिषीय उपायों के सहारे बैठना घातक होगा ! क्योकि एक बात बहुत स्पष्ट रूप से समझ लेना चाहिए कि मात्र ज्योतिषीय, मंत्र-यंत्र से ही किसी रोग का निवारण नहीं किया जा सकता है क्योकि ग्रह स्थितियों को सुधारकर भी आप शरीर में आये भौतिक परिवर्तन को नहीं बदल सकते …!

अंततः सारा खेल अवचेतन मन को ही करना होता है यदि व्यक्ति निराश हताश हुआ तब फिर न दवा काम करेगी न कोई उपाय ! अतः मन को दृढ़ रखकर ज्योतिषीय उपायों के साथ-साथ किसी योग्य चिकित्सक से सलाह लेकर उसके द्वारा बताये गये उपचार, औषधि सेवन व जाँच आदि कराना उतना ही आवश्यक है ! तभी इसका पूर्ण निदान सम्भव हो सकता है।

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