ज्योतिष शास्त्र से लोगों के भूतकाल से लेकर भविष्य तक को जाना जा सकता है ! भविष्यवाणी करने के समय मुख्य पांचों तत्वों (आकाश, जल, पृथ्वी,अग्रि व वायु ) के साथ ही नक्षत्र और राशियों को ध्यान में रखा जाता है ! भविष्यवाणी करने के लिए कुण्डली में लग्न सबसे प्रभावी होता है ! ज्योतिष शास्त्र की पाराशर से लेकर जैमिनी पद्धतियों ने ग्रहों के योगों को ज्योतिष फलादेश का आधार माना है ! योग के आंकलन के बिना सही फलादेश कर पाना सम्भव नहीं है !
जिस प्रकार दो तत्वों के मेल से योगिक बनता है, उसी प्रकार दो ग्रहों के मेल से योग का निर्माण होता है। ग्रह योग बनने के लिए कम से कम किन्हीं दो ग्रहों के बीच संयोग, सहयोग अथवा सम्बन्ध बनना आवश्यक होता है ! ज्योतिषशास्त्र के अनुसार ग्रहों के बीच योग बनने के लिए कुछ विशेष स्थितियों का होना जैसे- दो या दो से अधिक ग्रह का दृष्टि सम्बन्ध, भाव विशेष में कोई अन्य ग्रह का संयोग, कारक तत्व की शुभ स्थिति, कारक ग्रह का अकारक ग्रह से सम्बन्ध, एक भाव का दूसरे भाव से सम्बन्ध, नीच ग्रहों से अथवा शुभ ग्रहों से मेल आदि ! इन सभी स्थितियों में योग का निर्माण होता है !
जन्मकुण्डली में शुभ और अशुभ दोनों तरह के योग होते हैं ! यदि शुभ योगों की संख्या अधिक है तो साधारण परिस्थितियों में जन्म लेने वाला व्यक्ति भी धनी, सुखी और पराक्रमी बनता है, लेकिन यदि अशुभ योग अधिक प्रबल हैं तो व्यक्ति लाख प्रयासों के बाद भी हमेशा संकटग्रस्त ही रहता है ! कुण्डली में शुभ ग्रहों पर अशुभ ग्रहों की दृष्टि या शुभ ग्रहों से अधिक प्रबल अशुभ ग्रहों के होने से दुर्योगों का निर्माण होता है !
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कुछ विशिष्ट अशुभ योग :
1 – शकट योग :
वैदिक ज्योतिष के अनुसार शकट योग को अशुभ योग माना जाता है ! जब किसी कुण्डली में शकट योग होता है तो जातक को गंभीर आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है ! गज केसरी योग की भांति शकट योग भी किसी कुण्डली में गुरु और चन्द्रमा के संयोग से ही बनता है, किन्तु इस योग का प्रभाव शुभ न होकर अशुभ माना जाता है !
2 – अंगारक योग :
यदि किसी कुण्डली में मंगल का राहु या केतु में से किसी एक के साथ स्थान अथवा दृष्टि से संबंध स्थापित हो जाए तो अंगारक योग का निर्माण हो जाता है ! इसके कारण जातक का स्वभाव आक्रामक, हिंसक तथा नकारात्मक हो जाता है, तथा इस योग के प्रभाव में आने वाले जातकों के अपने भाईयों, मित्रों तथा अन्य रिश्तेदारों के साथ सम्बंध भी खराब हो जाते हैं !
3 – दुर योग :
यदि किसी कुण्डली में दसवें घर का स्वामी ग्रह कुंडली के 6, 8 अथवा 12वें घर में स्थित हो जाए तो ऐसी कुण्डली में दुर योग बन जाता है ! इससे व्यक्ति के व्यवसाय पर बहुत अशुभ प्रभाव पडता है ! व्यक्ति की आर्थिक स्थिति खराब हो जाती है, व्यक्ति अनैतिक तथा अवैध कार्यों के माध्यम से धन कमाते हैं, जिसके कारण इन जातकों का समाज में कोई सम्मान नहीं होता तथा ऐसे जातक अपने लाभ के लिए दूसरों को चोट पहुंचाने में बिल्कुल भी नहीं हिचकिचाते !
4 – दरिद्र योग :
यदि किसी कुण्डली में 11वें घर का स्वामी ग्रह कुंडली के 6, 8 अथवा 12वें घर में स्थित हो जाए तो ऐसी कुण्डली में दरिद्र योग बन जाता है ! ऐसे में व्यक्ति के व्यवसाय तथा आर्थिक स्थिति पर बहुत अशुभ प्रभाव डाल सकता है ! दरिद्र योग के प्रबल प्रभाव में आने वाले जातकों की आर्थिक स्थिति जीवन भर खराब ही रहती है तथा ऐसे जातकों को अपने जीवन में अनेक बार आर्थिक संकट का सामाना करना पड़ता है !
5 – ग्रहण योग :
यदि किसी कुण्डली में सूर्य अथवा चन्द्रमा के साथ राहु अथवा केतु में से कोई एक स्थित हो जाए या किसी कुण्डली में यदि सूर्य अथवा चन्द्रमा पर राहु अथवा केतु में से किसी ग्रह का दृष्टि आदि से भी प्रभाव हो तब कुंडली में ग्रहण योग बन जाता है ! ग्रहण योग से जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में समस्याएं पैदा होती हैं, व्यक्ति की मानसिक स्थिति अत्यंत खराब रहती है, मस्तिष्क स्थिर नहीं रहता, कार्य में बार-बार बदलाव होता है, बार-बार नौकरी और शहर बदलना पड़ता है, पागलपन के दौरे तक पड़ सकते हैं !
6 – नाग दोष :
यदि किसी कुण्डली में राहु अथवा केतु कुंडली के पहले घर में, चन्द्रमा के साथ अथवा शुक्र के साथ स्थित हों तो ऐसी कुण्डली में नाग दोष बन जाता है जो कुण्डली में इस दोष के बल तथा स्थिति के आधार पर जातक को विभिन्न प्रकार के कष्ट तथा अशुभ फल दे सकता है !
7 – केमद्रुम योग :
यदि किसी कुण्डली में चन्द्रमा के अगले और पिछले दोनों ही घरों में कोई ग्रह न हो तो या कुंडली में जब चंद्र द्वितीय या द्वादश भाव में हो और चंद्र के आगे और पीछे के भावों में कोई अपयश ग्रह न हो तो केमद्रुम योग का निर्माण होता है ! जिस कुण्डली में यह योग होता है, उसे जीवनभर धन की कमी, निर्धनता अथवा अति निर्धनता, विभिन्न प्रकार के रोगों, मुसीबतों, व्यवसायिक तथा वैवाहिक जीवन में भीषण कठिनाईयों आदि का सामना करना पड़ता है !
8 – कुज योग :
यदि किसी कुण्डली में लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या द्वादश भाव में मंगल स्थित हो जांय तो कुज योग बनता है ! इसे मांगलिक दोष भी कहते हैं ! जिस स्त्री या पुरुष की कुण्डली में कुज दोष हो उनका वैवाहिक जीवन कष्टप्रद रहता है, इसीलिए विवाह से पूर्व भावी वर-वधु की कुण्डली मिलाना आवश्यक है ! यदि दोनों की कुण्डली में मांगलिक दोष है तभी विवाह किया जाना चाहिए !
9 – षड़यंत्र योग :
षड़यंत्र योग यदि लग्नेश आठवें घर में बैठा हो और उसके साथ कोई शुभ ग्रह न हो तो षड्यंत्र योग का निर्माण होता है ! यह योग अत्यंत खराब माना जाता है ! जिस स्त्री-पुरुष की कुंडली में यह योग हो वह अपने किसी करीबी के षड्यंत्र का शिकार होता है जैसे धोखे से धन- सम्पत्ति का छीना जाना, विपरीत लिंगी द्वारा मुसीबत पैदा करना आदि !
10 – भावनाश योग :
जब कुण्डली में किसी भाव का स्वामी त्रिक स्थान यानी छठे, आठवें और 12वें भाव में बैठा हो तो उस भाव के सारे प्रभाव नष्ट हो जाते हैं जिस भाव का वह स्वामी है ! उदाहरण के लिए यदि धन स्थान की राशि मेष है और इसका स्वामी मंगल छठे, आठवें या 12वें भाव में हो तो धन स्थान के प्रभाव समाप्त हो जाते हैं, और धन हानि होती है !
11 – अल्पायु योग :
जब कुंडली में चंद्र पाप ग्रहों से युक्त होकर त्रिक स्थानों में बैठा हो या लग्नेश पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो और वह शक्तिहीन हो तो अल्पायु योग का निर्माण होता है ! जिस कुण्डली में यह योग होता है उस व्यक्ति के जीवन पर हमेशा संकट मंड़राता रहता है और उसकी आयु कम होती है !
12 – गुरु चाण्डाल योग :
गुरु चाण्डाल योग की प्रचलित परिभाषा के अनुसार, यदि किसी कुण्डली में गुरु अर्थात बृहस्पति के साथ राहु या केतु में से कोई एक स्थित हो अथवा किसी कुण्डली में गुरु का राहु अथवा केतु के साथ दृष्टि आदि से कोई सम्बंध बन रहा हो तो ऐसी कुण्डली में गुरु चाण्डाल योग बनता है ! इसके दुष्प्रभाव के कारण जातक का चरित्र भ्रष्ट हो सकता है, जातक अनैतिक अथवा अवैध कार्यों में संलग्न हो सकता है ! इस दोष के निर्माण में बृहस्पति को गुरु कहा गया है तथा राहु और केतु को चाण्डाल माना गया है और गुरु का इन चाण्डाल माने जाने वाले ग्रहों में से किसी भी ग्रह के साथ स्थिति अथवा दृष्टि के कारण सम्बंध स्थापित होने से कुण्डली में गुरु चाण्डाल योग का बनना माना जाता है !
13 – चाण्डाल योग :
चांडाल योग कुण्डली के किसी भी भाव में बृहस्पति के साथ राहु का उपस्थित होना चांडाल योग का निर्माण करता है ! इस योग का सर्वाधिक प्रभाव शिक्षा और धन पर होता है ! जिस व्यक्ति की कुंडली में चांडाल योग होता है वह शिक्षा के क्षेत्र में असफल होता है और कर्ज में डूबा रहता है ! चांडाल योग का प्रभाव प्रकृति और पर्यावरण पर भी पड़ता है !
ज्योतिष विद्या अत्यंत विस्तृत एवं गूढ़ है, इसे किसी गणितीय फार्मूले की तरह सरल रूप में एक समान परिणाम वाला समझने की भूल नहीं करना चाहिए, बल्कि रसायन शास्त्र की तरह जटिल प्रक्रिया वाला शास्त्र समझना चाहिए, क्योंकि हर परिस्थिति वही ग्रह या ग्रहों का समूह समान फल नहीं देते हैं ! इस शास्त्र के विज्ञान को समझने के लिए गहन अध्ययन व अनुभव की आवश्यकता होती है ! यही वजह है कि बारह राशियों में से किसी राशि में एक साथ जन्मे प्रत्येक व्यक्ति का भी भाग्य अलग अलग होता है !
कोई प्रकाण्ड पंडित भी सम्पूर्ण ज्योतिषीय अवधारणा बताने में समर्थ नहीं है ! ज्योतिष की कार्य प्रणाली DNA की कार्य प्रणाली की तरह बहुत ही जटिल व दुरूह है !